जहाँ असहमति भी संवाद बन जाए, और महानता मुस्कान में सिमट जाए—वहीं अटल जी खड़े नजर आते हैं,विनम्रता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जिनके विराट व्यक्तित्व के सामने नहीं टीकते थे कोई – प्रकाश उपाध्याय 

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  • केंद्रीय सचिवालय में कार्य करते हुए अटल जी के साथ बीताए छड़ों को बता रहे हैं संघीय कार्यकर्ता प्रकाश उपाध्याय।

 

चम्पावत। आज देश पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय राजनीति के अप्रतिम व्यक्तित्व अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिन पर उन्हें सादर नमन कर रहा है। अटल जी केवल एक राजनेता नहीं थे, वे लोकतंत्र की मर्यादा, संवाद की शालीनता और विचारों की गरिमा के जीवंत प्रतीक थे। राजनीति में वैचारिक मतभेद स्वाभाविक होते हैं। अटल जी से भी मेरे कई मुद्दों पर मत नहीं मिलते थे, पर यह असहमति कभी कटुता में नहीं बदली। कारण साफ था—अटल जी का व्यक्तित्व। वे सरल थे, सहृदय थे और सामने वाले की बात को सम्मान के साथ सुनने वाले नेता थे। यही गुण उन्हें भीड़ से अलग, और इतिहास में ऊँचा स्थान देता है। अटल जी की वक्तृत्व कला किसी परिचय की मोहताज नहीं है। वे ऐसे वक्ता थे, जिन्हें सुनने समर्थकों से अधिक विरोधी खिंचे चले आते थे। उनकी सभाएँ केवल राजनीतिक कार्यक्रम नहीं होती थीं, वे विचारों का उत्सव होती थीं। लोग मीलों पैदल चलकर आते थे, सिर्फ उन्हें सुनने के लिए उनकी भाषा, उनके तर्क और उनकी कविता में ढली राजनीति के लिए।

इसी क्रम में एक स्मरणीय प्रसंग मेरे मन में उभरता आया है। रायसीना रोड स्थित उनके आवास पर हम दोनों टहल रहे थे। बातचीत के दौरान मैंने उनसे भाषणकला पर एक पुस्तक लिखने का प्रस्ताव रखा। यह स्वाभाविक ही था आखिर उनसे बेहतर विषय का पात्र कौन हो सकता था।

अटल जी हल्के से मुस्कुराए और बोले— “मैं ही मिला इस काम के लिए? और कोई देखो।” यही थी उनकी विनम्रता। जिस व्यक्ति ने संसद को अपनी वाणी से बार-बार मंत्रमुग्ध किया, जिसने शब्दों को राजनीति का शस्त्र नहीं, सेतु बनाया, वह स्वयं को इस योग्य मानने से इनकार कर देता है। यह कोई सामान्य विनय नहीं थी, यह आत्ममुग्धता से परे खड़ी महानता थी।

आज के समय में, जब राजनीति में शोर अधिक और संवाद कम है, अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तित्व और भी प्रासंगिक हो जाता है। वे सिखाते हैं कि विरोध में भी गरिमा हो सकती है, सत्ता में भी संवेदनशीलता और सफलता के शिखर पर भी विनम्रता। अटल जी चले गए, पर उनकी मुस्कान, उनकी वाणी और उनका संस्कार भारतीय राजनीति की आत्मा में स्थायी रूप से दर्ज हो चुका है।

 

फोटो – प्रकाश उपाध्याय

नोट – श्री प्रकाश उपाध्याय केन्द्रीय सचिवालय दिल्ली में एक लोक सेवक होने के बावजूद वे एक संघीय कार्यकर्ता की सक्रिय भूमिका में रहा करते थे। तथा उनका भाजपा के शीर्ष नेताओं से भी आत्मिय सम्बन्ध रहा करता था श्री उपाध्याय लोहाघाट के मडलक गांव के निवासी हैं।

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