“दो बेकार पड़े पावरहाउसों को पुनर्जीवित कर वे उगलने लगेंगे पांच सौ किलोवाट बिजली, मुख्यमंत्री के मांडल जिले में रोज जुड़ती जा रही है विकास और रोजगार की नई कडिंया”।
चम्पावत। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा चंपावत को मॉडल जिला घोषित किए जाने के बाद से जिले में ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में जो कदम उठे हैं, वे अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुके हैं। यह सिर्फ परियोजनाओं की बहाली भर नहीं, बल्कि एक ऐसे भविष्य की नींव है जिसमें चंपावत अपने संसाधनों से खुद को रोशन करेगा। जिला वर्तमान में 10 मेगावाट सौर ऊर्जा पैदा कर रहा है, और मार्च 2026 तक इसे बढ़ाकर 30 मेगावाट करने का लक्ष्य तय किया गया है। यह आंकड़ा केवल बिजली उत्पादन नहीं, बल्कि चंपावत की बदलती सोच और दूरदर्शिता का प्रतीक है। हर घर की छत में सोलर प्लांट—यह वह विचार है जो आने वाले वर्षों में चंपावत को उत्तराखंड की सौर राजधानी बनाने की क्षमता रखता है। कभी 300 किलोवाट क्षमता का सपना सजाने वाली सप्तेश्वर परियोजना उपेक्षा के अंधेरे में खो गई थी। अब इसे फिर से जगाने की पहल शुरू हो गई है।
यह कदम सिर्फ बिजली बढ़ाने का नहीं, बल्कि जिले की पिछली गलतियों को सुधारने और संसाधनों के सम्मान का भी प्रतीक है। 1966 में बनी 200 किलोवाट क्षमता की गोंडी परियोजना वह स्रोत थी जिसने पहली बार गोंडी तथा लोहाघाट और चंपावत को रोशन किया था। यहां विदेशी टर्बाइनें जंग खाती रहीं, योजनाएं फाइलों में सोती रहीं—लेकिन अब इस परियोजना का पुनर्जन्म हो रहा है।
पीपीपी मोड में इसकी बहाली बताती है कि सरकार परियोजनाओं को सिर्फ खोलना नहीं चाहती, बल्कि टिकाऊ मॉडल चाहती है। 300 किलोवाट क्षमता की सप्तेश्वर परियोजना को पुनर्जीवित करने के लिए राज्य सरकार ने 119.27 लाख रुपये की मंजूरी दी है। टेंडर प्रक्रिया के बाद यह परियोजना उस ऊर्जा अंतर को भर देगी, जिसका बोझ वर्षों से पहाड़ झेलता आ रहा है।
इन दोनों परियोजनाओं के चालू होते ही चंपावत को 500 किलोवाट अतिरिक्त ऊर्जा मिलने लगेगी। डीएम मनीष कुमार ने स्पष्ट संदेश दिया है कि ऊर्जा उत्पादन सिर्फ सरकारी फाइलों का एजेंडा नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। छतों पर सोलर प्लांट, घरों में सोलर वॉटर हीटर यह वह सामाजिक ऊर्जा आंदोलन है जो चंपावत के भविष्य को बदल सकता है।
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पूर्वजों की देन “घराट” अब परंपरा से तकनीक की राह पर।
चम्पावत। जिले की पुरानी पनचक्कियों यानी “घराट” को पुनर्जीवित करने की पहल चंपावत को सिर्फ बिजली नहीं, बल्कि पहचान भी देगी। उरेड़ा द्वारा देवीधुरा के पास नेतणा गांव में “घराट” को आधुनिक तकनीक से विकसित किया जा रहा है जहां ऊर्जा उत्पादन के साथ मत्स्य पालन की योजना भी जुड़ रही है। यह केवल विरासत का संरक्षण नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पर्यटन को नई उड़ान देने की तैयारी है। उरेडा की परियोजना अधिकारी चांदनी बंसल के अनुसार यह ऐसा प्रोजेक्ट होगा जो विरासत एवं आधुनिकता का संगम बनेगा। जिसे देखने के लिए पर्यटकों की खूब आवाजाही होगी।