कमलेख लधौन की लोहे की कढ़ाइयों के “ब्रांड एंबेसडर” बने जिलाधिकारी मनीष कुमार,प्राकृतिक आयरन ‘लोकल फॉर वोकल’ को मिला प्रशासनिक समर्थन

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फोटो – कैलाश के स्टॉल पर पहुँचकर उत्साहवर्धन करते जिलाधिकारी मनीष कुमार, साथ में नगर पालिका अध्यक्ष गोविंद वर्मा।

 

हाथ से बनी काली कुमाऊँ की कढ़ाइयाँ बढ़ाती हैं स्वाद, देती हैं प्राकृतिक आयरन ‘लोकल फॉर वोकल’ को मिला प्रशासनिक समर्थन।

 

लोहाघाट। काली कुमाऊँ की परंपरागत शिल्पकला को नया आयाम देते हुए कमलेख लधौन गांव में हाथ से बनी लोहे की कढ़ाइयों को जिलाधिकारी मनीष कुमार का सशक्त समर्थन मिला है। इन विशिष्ट कढ़ाइयों में बना भोजन न केवल स्वाद में कई गुना बेहतर होता है, बल्कि इससे प्राकृतिक रूप से आयरन भी प्राप्त होता है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। एक समय लोहाघाट की पहचान रहे सांभर के जूते का कारोबार भले ही समय के साथ विलुप्त हो गया हो, लेकिन पाटी ब्लॉक अंतर्गत कमलेख लधौन गांव के “उत्तराखंड शिल्प रत्न” पुरस्कार से सम्मानित शिल्पकार पुष्कर राम आज भी अपने पूर्वजों की विरासत को जीवित रखे हुए हैं। उनके साथ उनके पुत्र कैलाश राम, बहू ममता देवी और पौत्र अश्मित कुमार पीढ़ी दर पीढ़ी इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं।

गांव में तैयार की जाने वाली लोहे की कढ़ाइयों को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन्हें बनाने में कितनी मेहनत लगती है। लोहे को हाथ से पीट-पीटकर आकार देना आसान नहीं। इस कठिन श्रम को देखकर आज भी पसीना आ जाता है। पुष्कर राम ने गांव में रहते हुए ही इस शिल्प को सीखा और आज उनके बनाए उत्पाद लगभग 15 लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं।

पुत्र कैलाश राम विभिन्न स्थानों पर जाकर इन उत्पादों की बिक्री करते हैं। “कैलाश लोहे की कढ़ाइयाँ” के नाम से ये उत्पाद बाजार में पहचान बना चुके हैं। नगर के स्टेशन बाजार में वीर कालू सिंह मेहरा चौक में कैलाश ने स्थायी स्टॉल भी लगाया है, जहाँ उनकी पत्नी ममता देवी भी सक्रिय सहयोग देते हैं।

जब जिलाधिकारी मनीष कुमार को इस अनमोल सौगात के बारे में जानकारी मिली, तो वे स्वयं कैलाश के स्टॉल पर पहुँचे और शिल्पकार परिवार से संवाद किया। उन्होंने प्रधानमंत्री के ‘लोकल फॉर वोकल’ अभियान का उल्लेख करते हुए कहा कि इन कढ़ाइयों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए और वे स्वयं इसके लिए पहल करेंगे। जिलाधिकारी ने कहा कि यह मॉडल जिले की ऐसी विशिष्ट सौगात है, जिसे उपहार के रूप में दिया जाए तो पाने वाला व्यक्ति इसे वर्षों तक याद रखेगा। उन्होंने यह भी कहा कि सिल्वर के बर्तनों में भोजन पकाने से कई रोगों की आशंका रहती है, जबकि लोहे की कढ़ाइयाँ स्वास्थ्य के लिए अधिक लाभकारी हैं।

 

 

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लोहे की कढ़ाइयों की खासियत।

लोहाघाट। हाथ से बनी कढ़ाइयों को नींबू और राख से साफ करने पर स्टेनलेस स्टील जैसी चमक आ जाती है। इनमें जंग नहीं लगती।

भोजन में प्राकृतिक रूप से आयरन की मात्रा बढ़ती है।

स्वाद कई गुना बेहतर हो जाता है। कढ़ाई के अलावा फ्राइंग पैन, इंडक्शन-फ्रेंडली बर्तन, पूजा सामग्री सहित अनेक उत्पाद तैयार किए जाते हैं।

 

 

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